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Showing posts from January, 2018

कविता-इश्क़ समंदर

तेरे साथ बिताए हुए हर लम्हे से प्यार हो गया, तेरे साथ एक पल का रिश्ता नही, जन्म जन्मजांतर का रिश्ता बन गया, तुम्हारे बिना अधूरी ये ज़िन्दगी लगती है, तेरे बिना एक अधूरी सी कहानी लगती हूँ, समंदर की लहरों सी ज़िन्दगी लगती है, जज्बातो में ही बयान कर दूं क्या मोहब्बत, कोशिशे तो बहुत करती हूँ वफ़ा करने की, तू न रूठे मुझसे यही सोचती हूँ, तुझ बिन जीना मुश्किल है, तू कह दे अगर की दुनिया छोड़ दूं मैं, तो ये दुनिया भी भुला दूँगी मैं, बस तुझको अपनी हर सांस दे दूँगी मैं, तेरी यादे अब रातों को बहुत आती है, मेरी नींदे चुरा ले जाती है, तेरी कमी तभी पूरी होगी, जब हर सुबह तेरे संग गुजरेगी, हर शाम तेरे संग ढलेगी, 'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा हरदोई(उत्तर प्रदेश)

कहानी-अनजान मुसाफ़िर भाग-7

 कहानी-अनजान मुसाफ़िर-भाग -7 रेवती ने ऋषभ के जाने के बाद खुद को अपने कमरे में ही कैद कर लिया था। क्या यही किस्मत थी उसकी क्या यही प्यार था उसका। काश उससे मिली न होती वो! यही सोचकर रोते हुऐ उसकी आंखे लाल हो गयी थी। रमा जी आयी रेवती के कमरे में । 'क्या हुआ रेवती कुछ दिन से देख रही हूँ कि बहुत गुमसुम रहती है कोई तकलीफ है किसी ने कॉलेज में कुछ कहा बताओ न रेवती रमा जी ने पूछ?? झूठी मुस्कुराहट लाते हुये खुद के आंसू छिपाते हुए बोली -माँ आप भी न कैसी बाते करती हो।क्या कभी आपकी बेटी ने आपसे कुछ छिपाया है जो अब छिपायेगी। खुद को कैसे संभाल पा रही थी रेवती खुद ही जानती थी। एक तरफ मां से झूठ बोल रही थी ऋषभ को गये हुए 3 दिन हो गये थे। न कोई कॉल न मैसेज। कहाँ होगा किस हाल में होगा कुछ भी तो नही पता था उसको। क्या सच मे वो उसको छोड़कर चला गया था।या फिर कोई मजबूरी थी उसकी अरे तो बता तो सकता था। मैं कौन सा उसको रोक लेती। क्यों किया ऐसा ऋषभ ने। यही सोचकर सिर फटा जा रहा था।  मे कैसी हो गयी थी।कितने दिनों से खुद की शक्ल नही देखी थी उस पागल सी लड़की ने ।कॉलेज जाने का दिल भी नही करता। हर रोज कॉल करती ऋषभ

लघुकथा- धुंध

आज सुमन ने नव वर्ष के आगमन में खूब शानदार पार्टी रखने की सोची । आज वैभव भी आ रहा था मुम्बई से। बहुत खुश थी मानो सारे जहां की खुशी एक पल में ही मिलने वाली थी। पूरे 3 महीने के बाद मिल रही थी वो अपने बॉयफ्रेंड वैभव से। मन ही मन मुस्कुरा रही थी और उसकी मम्मी को आश्चर्य हो रहा था कि गुमसुम रहने वाली सुमन आज इतनी खुश हैं मगर चलो अच्छा है जो भी है उनकी बेटी खुश तो है। आज होटल में शानदार पार्टी थी सारा अरेंजमेंट वैभव ने किया था । सुमन ने सोचा कि चलो वो भी स्टेशन पहुचकर वैभव को सरप्राइज देगी। उसको याद है कालेज टाइम में उसकी बहुत हेल्प करता था स्टडी में। पुरानी बातों को याद करते करते कब स्टेशन आ गया पता ही नही चला। ऑटो स्टेशन पहुँच गया था । ऑटो से उतरकर वह प्लेटफार्म 2 पर पहुँची। ट्रेन आने में 20 मिनट कम थे कितनी सर्दी थी चारो तरफ कोहरे की धुंध थी। ट्रेन आ चुकी थी सामने आता हुआ वैभव दिखाई दिया। मगर ये क्या उसके हाथों को थामे एक लड़की भी दिखाई दी। जिससे हँस हँस के बाते कर रहा था वैभव। जैसे ही नज़दीक आया वह । अचानक से सुमन को देख कर रुक गया।  'ये कौन है'?? उस लड़की ने पूछा वैभव से । वैभव