लौट आओ न तुम
यूं जाते जाते एक बार मुड़कर तो देख लेते, कोई रो रहा था ये समझ तो लेते, तेरे जाने का गम नही था मुझे, बस मेरे तड़पते हुए दिल का दर्द समझ लेते माना कि तेरी मंजिल तेरे करीब थी, कोई और तेरा नसीब था मुझे छोड़कर जाना था, मेरा हाल कुछ खास नही रहता अब, वो हँसती हुई पगली सी लड़की अब हर रोज नही मुस्कुराती, कभी कभी सबको दिखाने के लिऐ हँसने का दिखावा कर लेती हूं मगर माँ न जाने क्यूँ वो छुपे आँसू देख लेती है, मैं हर रोज उस दर्द से गुजरती हूँ, जब वो चाहत याद आती है, मैं हर रोज उस सुर्ख गुलाब की पत्तियां छू लेती हूँ, तुमने दिया था मुझे जो गुलाब पहली मुलाकात में, आज भी वैसे ही किताब छुपा रखा हैं, सारी बाते याद आती है मुझे,वो शाम की गुलाबी सी धूप और फिर बारिश का पानी,सब याद है, बस एक तुम ही हो जो यादों में आकर भी तड़पा जाते हो, वरना उन लम्हो से ऐसा इश्क हो गया , कि ये दिल आज भी सोचता है, कि आ जाओ लौट कर मेरे मीत। " उपासना पाण्डेय"( आकांक्षा) हरदोई ( उत्तर प्रदेश)