"बारिश", को प्रतिलिपि पर पढ़ें :
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ये मेरा मन उदास सा क्यों है, सब के साथ हूँ। मगर क्यों एक भ्रम जाल सा बन गया है। मैंने भी महसूस किया ये बदलाव हैं। क्यों मुझे कुछ समझ नही आता। जितना सुलझा रही हूं ये उलझे हुऐ रिश...
"आखिरी पड़ाव", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/0RDdfgDLpSEG?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क
कहानी-अनजान मुसाफ़िर भाग-8 सूरज की रोशनी चारो तरफ फैल चुकी थी। मां नाश्ता बना कर सबके आने की प्रतीक्षा करने लगी। रेवती पहले नाश्ते की टेबल पर इतना शोर मचाती थी कि सब परेशान हो ...
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