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Showing posts from February, 2018

Prtilipi pr meri story

"सागर से गहरा है प्यार हमारा", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-h1gaGwLd6HUt&utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

लघुकथा- सुयोग्य वर

प्रियंका एक बेहद ही पढ़ी लिखी और खुले विचारों वाली लड़की थी मगर एक मध्यमवर्गीय परिवार में उसके विचारों को समझने वाला कोई नही था। माँ गृहणी थी और पिता जी एक सरकारी स्कूल में क्लर्क।परिवार का माहौल बिल्कुल साधारण था।दुनिया की चमक दमक से दूर। आज के लोगो को जो चाहिये वो है दिखावा। जो उसके परिवार में था नही।पैसे की कीमत क्या होती है प्रियंका भलीभांति जानती थी। घर मे कमाने वाला एक और इतना ख़र्चा फिर भी पापा को कभी परेशान नही देखा था उसने कभी कुछ नही कहते अपने बच्चो से या पत्नी से। आज प्रियंका की शादी के दिन न जाने पापा क्यूँ बहुत परेशान थे सब तो घर के कामो में व्यस्त थे।प्रियंका अपने कमरे से पापा को देख रही थी बार बार घड़ी पर नज़र डाल कर परेशान से हो रहे थे अचानक लैंडलाइन पर फ़ोन आया उधर से प्रियंका के ससुर का फ़ोन था बोल रहे थे कि 5 लाख रुपया तैयार रखना वरना बारात वापिस ले जाएंगे वो। उधर कमरे में दूसरे फ़ोन से ये सब सुन रही थी प्रियंका। आंखों से आंसू बह रहे थे पापा के भी और प्रियंका के भी। कभी पापा को रोते नही देखा था उसने। दिल मे गुस्सा भरा हुआ था । बारात दरवाजे पर थी और उसके ससुर पापा की तरफ इशा

प्रतिलिपी पर मेरी कहानी

"प्रेमकथा प्रतियोगिता के लिए(पवित्र प्रेम)", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE-04iTtktgTeJz&utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

लघुकथा- हैप्पी वेलेंटाइन डे

रिया खुद को  बहुत ही होशियार और आधुनिक युग की लड़की समझती अगर दादी कभी कह भी देती कि बिटिया जरा संभल कर कदम रखा कर जवान लड़कियों के ये लकछन ठीक नही और ये लाल लिपिस्टिक और काजर लगा कर कालिज जाती हो तेरे बाप को तो बस पैसा कमाने के सिवाय कुछ दिखता ही नही। और मां को घर के कामो से फुर्सत नही है कोई ध्यान ही नही देता है इसपर रिया बड़ी बड़ी आंखे मटका कर बोलती दादी आप भी न गवारो जैसी बातें मत किया करो ये मुम्बई है ।आपका वो   गांव यहां के लोग वहां के जैसे नही है । आप भी डैड के साथ यहाँ आ गयी वरना आप भी अंकल के साथ उस धूल और गोबर में सड़ती। और मुँह बिचका कर अपने कमरे में चली गयी। मोबाइल पर रवि की 9 मिसकॉल  !अरे  आज तो वैलेंटाइन डे और आज तो उसको रवि से मिलना था। ओफ्फो दादी के चक्कर मे भूल ही गयी थी। रवि को कॉल की घँटी जा रही थी उधर से फ़ोन उठाया रवि ने। "कहाँ थी " गुस्से में रवि बोला। रिया- सॉरी जानू । वो कुछ प्रॉब्लम थी सॉरी यार प्लीज़ मान जाओ न। रवि- ठीक लेकिन मेरी शर्त है अभी मिलने आओ। हम्म आती हूँ। बोलकर फ़ोन काट दिया। बहुत छोटी सी ड्रेस पहनकर कमरे से बाहर आई रिया को देखकर दादी की आंख

लघुकथा- हैप्पी वेलेंटाइन डे

रिया खुद को  बहुत ही होशियार और आधुनिक युग की लड़की समझती अगर दादी कभी कह भी देती कि बिटिया जरा संभल कर कदम रखा कर जवान लड़कियों के ये लकछन ठीक नही और ये लाल लिपिस्टिक और काजर लगा कर कालिज जाती हो तेरे बाप को तो बस पैसा कमाने के सिवाय कुछ दिखता ही नही। और मां को घर के कामो से फुर्सत नही है कोई ध्यान ही नही देता है इसपर रिया बड़ी बड़ी आंखे मटका कर बोलती दादी आप भी न गवारो जैसी बातें मत किया करो ये मुम्बई है ।आपका वो   गांव यहां के लोग वहां के जैसे नही है । आप भी डैड के साथ यहाँ आ गयी वरना आप भी अंकल के साथ उस धूल और गोबर में सड़ती। और मुँह बिचका कर अपने कमरे में चली गयी। मोबाइल पर रवि की 9 मिसकॉल  !अरे  आज तो वैलेंटाइन डे और आज तो उसको रवि से मिलना था। ओफ्फो दादी के चक्कर मे भूल ही गयी थी। रवि को कॉल की घँटी जा रही थी उधर से फ़ोन उठाया रवि ने। "कहाँ थी " गुस्से में रवि बोला। रिया- सॉरी जानू । वो कुछ प्रॉब्लम थी सॉरी यार प्लीज़ मान जाओ न। रवि- ठीक लेकिन मेरी शर्त है अभी मिलने आओ। हम्म आती हूँ। बोलकर फ़ोन काट दिया। बहुत छोटी सी ड्रेस पहनकर कमरे से बाहर आई रिया को देखकर दादी की आंख

कविता-आप जैसा पिता मिला

कविता-आप जैसा पिता मिला मेरा क्या अस्तित्व होता , अगर आप जैसा पिता मुझे न मिलता, हर ज़िद को पूरा किया, हर पल मेरी खुशियों का ख्याल रखा, आप परेशान होते हो, क्यूँ कुछ नही कहते हो?? हर तकलीफ अकेले सहते हो, मैं बेटी हूँ आपकी तो क्या हुआ, आपकी हर तकलीफ समझती हूँ, हमे भी तकलीफ होती है, हर वक़्त हमारी खुशियों के लिए, कितनी मेहनत करते हैं, न सुकून की नींद, न कभी आराम किया, हर अच्छे पिता के जैसे हो, दुनिया क्या कहती है, कोई फर्क नही मुझको, आप ही हमारा संसार हो, आप ही हमारी दुनिया हो, हर मुश्किल में आपके साथ हूँ, हर परिस्थिति को समझना , इतना आसान नही, मगर मैं क्यों भूल जाऊं, जब मेरी हर खुशी का ख्याल, आपने रखा तो फिर क्यूं सुनूं मैं लोगो की बकवास, दुनिया ने क्या साथ दिया था , एक मजबूत सा इंसान जो खुद टूट कर बिखर गया, मगर कभी हमे टूटने नही दिया, धन्यवाद उस भगवान का, जिसने मुझे आप जैसा पिता दिया, "उपासना पाण्डेय"आकांक्षा हरदोई(उत्तर प्रदेश)

कविता-लोभ का अन्त कहाँ?

दहेज लेकर कब तक अपने बेटों को बेचेंगे लोग, फिर उम्मीद करते हैं कि एक बेटी घर आये बहू नही, कभी दर्द महसूस करो उन मां बाप का, जिनके घर बेटियां ब्याहने के लिये है, दहेज की आड़ में अच्छा कारोबार है, कभी बहू नौकरी वाली चाहिये, कभी संस्कारी बहू चाहिये, ज्यादा पढ़ी लिखी हो और चुप रहने वाली हो, हर ताने को सहने वाली हो, पोती नही पोते चाहिये, घर चलाने का ढंग आता हो, और नौकरी पर भी जाने वाली बहू चाहिये, कैसा ये लोभी समाज हो गया है, त्याग की मूरत तो चाहिये, मगर कभी खुद कोई त्याग करेगे नही, कभी कभी यही समझना मुश्किल हो जाता है, शादी तो एक पवित्र बंधन है, फिर क्यूँ करते हैं लोग व्यापार, बहू फोर व्हीलर वाली चाहिये, साथ साथ ढेर सारा दहेज चाहिये, और उम्मीद करते हैं , कि एक बहू नही बेटी मिलनी चाहिये, उस बेटी का दर्द क्या समझा था तब, जब बूढ़े बाप से दहेज लेकर भी, ससुर ने ये बोला था, एक एहसान कर रहे हैं, तेरे सिर् से एक बोझ उतार रहे हैं, ये शब्द जब भी याद आते हैं, उस बेबस पिता का चेहरा नज़र आता है, जिसने जीवन भर की पूंजी भी सौप दी, फिर भी डिमांड अभी बाकी है, 'उपासना पाण्डेय&

अनजान मुसाफ़िर- भाग-8

कहानी-अनजान मुसाफ़िर भाग-8 सूरज की रोशनी चारो तरफ फैल चुकी थी। मां नाश्ता बना कर सबके आने की प्रतीक्षा करने लगी। रेवती पहले नाश्ते की टेबल पर इतना शोर मचाती थी कि सब परेशान हो जाते थे। मगर आज सुबह तो हुई मगर अब वो रेवती बहुत बदल गई थी। न वो मुस्कुराहट न वो बचपना । पूरा घर सिर पर उठाने वाली रेवती अब बहुत गुम सुम सी थी। पापा और मां तो सोच रहे थे कि पता नही क्या बात है । पूरा घर सकते में था कोई कुछ पूछता भी तो ' कुछ  नही ' का रिस्पॉन्स दे देती । मन ही मन घुट रही थी किसी को कुछ बता भी नही सकती थी। ऋषभ ने तो उसकी खबर तक नही ली कि वो कैसे जी रही है उसके बिना। दो प्यार करने वालो के बीच इतनी दूरियां उन दोनों ने सोचा तक नही था कि एक दिन वो अलग तो होंगे ही साथ ही उनका रिश्ता इस कदर टूट कर बिखर जायेगा। किसका ज्यादा नुकसान हुआ ये तो नही पता मगर अगर रेवती की हालत को देखा जाये तो सबसे ज्यादा तकलीफ वही सहन कर रही थी। हर रोज फ़ोन करती मगर ऋषभ का नंबर बन्द आता। उसने एक फैसला कर ही लिया ।  ट्रिंग ट्रिंग घन्टी जा रही थी मगर वर्षा फ़ोन क्यूं नही उठा रही  10वी बार कॉल कर रही थी रेवती। अबकी बार वर्षा

कहानी-आज़ाद पंक्षी

 कहानी-आजाद पंक्षी ज़िन्दगी इतनी आसान नही होती जितना कि लोगों को और समाज को लगता है कि एक महिला को कितने भागों में विभाजित कर दिया जाता है ,पहले एक बेटी का दर्जा फिर पत्नी फिर बहु,फिर मां,भाभी और न जाने कितने रिश्तो को संभालती है एक औरत,मगर जरा सी गलती हो जाने पर कोई उसका साथ नही देता । चाहे समाज हो या अपना परिवार या फिर अपना जीवनसाथी कोई नही समझता उसकी भावनाओ को। मां बाप का सिर कभी नीचा नही होने देती है एक बेटी,भले ही अपने प्यार का बलिदान क्यूँ न करना पड़ जाये, अपने माँ बाप की इज्जत के लिए खुद के सपने तक ताक पर रखने वाली सिर्फ बेटियां ही होती है । किसी से कोई उम्मीद किये बिना हर फर्ज को निभाती है, अपने माँ बाप का घर त्याग कर ससुराल में बहु बनकर सभी कर्तव्य निभाती है एक अच्छी बहु बनने की हर कोशिश करती है और पति की परवाह भी मगर जरा सी चूक होने पर उसी पत्नी पर हाथ उठाने और उनको प्रताड़ित करना कहाँ का इंसाफ है। एक औरत सिर्फ इन सबके बदले में खुद के लिए प्यार और सम्मान ही तो माँगती है। अपने बच्चे को जन्म देकर उसकी देखभाल में खुद को भी भूल जाती है और अंत मे वही बच्चे तक उसको छोड़ कर चले जाते है