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Showing posts from 2017

सामाजिक लेख-समाज सेवा के दो पहलू

हमारे देश मे समाज के हित के लिए करोड़ो सामाजिक संस्थाये चलाई जा रही है । खासकर युवा वर्ग खास कर जो स्टूडेंट है। युवाओं का ये जोश देखकर लगता है कि वाकई यह गऱीबी और भुखमरी को दूर करने का प्रयास करते भी है। उदाहरण के लिये एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट अविनाश कुमार सिंह बलिया से जिन्होंने अपने बलबूते ही खुद की संस्था शुरू की बहुत ही अच्छा प्रदर्शन भी कर रहे हैं। मगर शुरूआत में कितनी कठनाइयों का सामना किया और लोगो ने सहयोग के बदले उपहास किया कि इंजीनियरिंग स्टूडेंट भला ये काम कैसे कर सकता है। 2016 में शुरू हुई आज ये संस्था बहुत ही अच्छा प्रदर्शन करती है। मन मे एक जज्बा है देश की गरीबी को मिटाने की। युवा चाहे तो कुछ भी कर सकता है। गरीबो और असह्यय लोगो की मदद करने के अलावा ये संस्था और भी बहुत अच्छे कदम की ओर अग्रसर है। बस समाज सेवा के बदले में खुशी मिल जाये यही बहुत है। मगर कुछ संस्थाओं में समाज सेवा कम पैसे की भूख दिखती है। गरीबो के लिऐ आये पैसे पर भूखे भेड़िये सी नज़र रखने वाली संस्थाओ पर शिकंजा कसना चाहिये। क्योंकि उनको सरकार पैसा तो दे रही मगर वो गरीबो के हित में खर्च भी हो रहा है या नही देखना च

लघुकथा-अभिलाषा

पूजा के जन्म पर न जाने क्यूँ उदासी सी थी । मां की चिंता किसी को नही थी। प्रसव पीड़ा से ज्यादा सरला को अपने घरवालों के रवैया पर पीड़ा हुई । नन्ही सी पूजा बड़ी बड़ी आंखों से चारो तरफ निहार रही थी। प्रेमनाथ भी कैसे बाप थे कि जिस पत्नी के साथ सात फेरे लेते वक्त सात वचन लिये उनको भी न अपनी पत्नी की चिंता न अपनी अबोध बच्ची की। प्रसव पीड़ा ने जितनी तकलीफ नही दी उतनी तो ये सोचकर कि किसी मानसिकता वाले घर मे रह रही थी। जो सास पूजा के जन्म से पहले इतनी फिक्र करती थी वही आज मुहँ फेर चुकी थी। सिर्फ इस वजह से की एक बेटा नही एक बेटी को जन्म दिया था लेकिन समय ही खराब था फिर भी सरला खड़ी रही ढाल बनके । उसने अपनी बेटी को बहुत नाजो से पला। दो साल बाद सौरव को जन्म हुआ । पूरे घर मे उत्सव मनाया गया। सरला कुछ नही भूली थी। बस बेटा बेटी का भेदभाव दिख रहा था। 'बेटी रिजल्ट आ गया तेरा ' सरला पूजा से पूछ रही थी आज उनकी बेटी ने पीसीएस परीक्षा में टॉप किया था। पूरे घर में  ही नही बल्कि पूरे मोहल्ले में उत्सव मनाया गया। एक माँ आज जीत गयी थी। जिस बेटी के होने पर सब उदास हुऐ थे। आज वो लोग भी खुश थे और प्रेमनाथ जी क

कहानी-सौतेली मां नही हूँ

।रूपा महज 19 साल की थी जब उसका विवाह 40 साल के सुरेश से हुई थी। गरीबी के कारण मां बाप पर बोझ ही थी वो उम्र में इतने बड़े आदमी से विवाह कर दिया। रूपा तो नासमझ सी थी। सुरेश की पहली पत्नी उर्मिला ने जुड़वा बच्चो को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गयी। और बच्चो का लालन पालन किया सुरेखा बुआ ने जो बालविवाह होने से उम्र से पहले ही विधवा हो गयी थी। तो अपने भाई सुरेश और बूढ़ी अम्मा के पास ही रहती थी। सुरेश की पत्नी की मौत से पूरा घर शोक ग्रस्त था। सुरेश को चिंता थी कि उसके बच्चो का पालन पोषण कैसे होगा। धीरे-धीरे 5 महीने बीत गये। सुरेश को यूं चुपचाप रहते देख अम्मा और बहन सुरेखा को चिंता होने लगी। ऊपर से जुड़वा बच्चो की भी फिक्र की बिन मां के बच्चे कैसे रहेंगे। आस पड़ोस की औरतो ने सलाह दी कि कोई गरीब घर की लड़की ब्याह लो। और पहले ही समझा देना कि इन्ही बच्चो की मां बनकर रहे वरना कोई बात नही। अम्मा रोज इधर उधर ऐसी लड़की तलाश रही थी और फिर मिल ही गयी रूपा । सुरेखा के ससुराल के पड़ोस की ही थी। सब बातचीत हो गयी और विवाह मन्दिर में ही सादगी तरीक़े से हो गया। सुरेश ने पत्नी का हक तो नही दिया बस सिंदूर और मंगलसूत्र का
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लघुकथा-दोषी कौन है?

संगीता रोज की तरह आज भी विद्यालय जाने के लिये तैयार हो रही थी। कक्षा आठ में पढ़ती थी संगीता ।उसके पिता किसान थे वो चाहते थे कि उसकी बेटी पढ़कर एक सरकारी अफसर बने और उनका नाम और अपने गावँ दोनो का नाम रोशन करे।  संगीता के बहुत से ख्वाब थे। पढ़ने में बहुत तेज थी विद्यालय में हमेशा प्रथम श्रेणी में पास  होती। सुबह विद्यालय जाने के लिये जैसे ही बाहर निकली गावँ के जमींदार का बेटा भूरा जो कि शराबी और अय्याश किस्म का  था ।घर से कुछ दूर पहुँची थी कि उस भूरा ने संगीता को गन्ने के खेत मे खींचकर ले जाकर दुष्कर्म किया। सुनसान जगह थी तो कोई जान ही नही पाया। शाम तक जब संगीता वापिस नही आई तो घरवालों को चिंता सताई कि संगीता गयी कहाँ काफी खोजबीन के बाद बेहोश मिली गावँ से दूर एक खेत मे अर्धनग्न अवस्था मे ।  कुछ नही बोल पायी बस कुछ देर माँ और बाप को निहारती रही और हालत बिगड़ने के कारण उसकी मौत हो गयी। मरने से पहले बस एक ही नाम लिया ' भूरा'। मगर माँ बाप बदनामी और गरीबी के आगे कुछ नही कर पाये उस राक्षस के साथ।  ज़मीदार ने भी पैसे के बलबूते मुहँ बन्द कर दिया ।भूरा आज भी न जाने कितनी लड़कियो का जीवन बर्बाद

लघुकथा-दादी की कुर्सी

सोनिया आज पूरे 15 साल बाद अपने देश भारत मे आयी थी। छोटी सी थी जब पापा मम्मी रिया दीदी, बूढ़ी दादी,और डॉगी टॉम को छोड़कर जब विदेश वाली मौसी के साथ भेज दिया था। दीदी से 5 साल छोटी थी सोनिया। उसको दादी से दूर कर दिया गया। मॉम ने हमेशा अपनी मर्जी सब पर थोपी  डैड को तो बस हमेशा चुप होते ही देखा था। सोनिया के दादा जी अपने बेटे से ज्यादा बहू को तवज्जो देते थे। डैड किसी मारिया नाम की लड़की से प्रेम करते थे। मगर दादा जी ने मॉम को चुना था कुछ नही कर सकी दादी अपने बेटे के लिये मजबूर थी। मॉम ने डैड का दिल जीतने की कोशिश तो नही कि ऊपर से अपनी इच्छाएं उन पर थोप दी। 2 साल बाद रिया दीदी का जन्म हुआ घर मे सब खुश थे। पापा भी खुश थे। मॉम को किटी पार्टी से फुर्सत ही नही थी। रिया दीदी की देखभाल दादी करती । डैड गुस्सा होते मॉम पर तो दादा जी मॉम की तरफदारी करते। दादी सब देखती फिर भी कहती कुछ नही। कुछ दिनों बाद दादा जी चल बसे। कैंसर के रोगी थे कितना इलाज हुआ मगर एक दिन दादी को छोड़कर दुनिया से चले गये। अब पूरे घर मे मॉम की मर्जी चलती। फिर कुछ दिन बाद मेरा जन्म हुआ मगर मॉम की लापरवाही बढ़ती ही जा रही थी और अब तो द

कहानी-तुम बिन अधूरी हूँ मैं

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दोस्तो ये कहानी एक रियल लव स्टोरी है। एक ऐसी लड़की की कहानी जिसमे उसकी जिंदगी का हर दर्द और गम हर खुशी का जिक्र किया है। कैसे उसकी मुलाकात उस शख्श से हुई  जो आज उसकी ज़िन्दगी बन गया। लोग कहते हैं कि पहले प्यार को कभी नही भुलाया जा सकता।मगर मैं इस बात से सहमत नही हूँ।पहला प्यार ही जब जिंदगी बर्बाद कर दे तो ऐसा प्यार भला कोई याद रखेगा। चलिये कहानी शुरू करते हैं। अंजली(काल्पनिक नाम)उम्र 17 साल एक नटखट सी शरारती लड़की थी। युं कहे तो सिर्फ बचपना था। दुनिया सी चालाकी और स्वार्थ नही था उसमे। सबकी लाड़ली थी। मम्मी पापा की जान थी।कोई भी जिद करती तो घर वाले मान जाते।अगर नही मानता कोई तो पूरा घर सिर पर उठा लेती।उसकी यही बचकानी हरकते कभी कभी उसकी माँ को परेशान कर देती। धीरे - धीरे समय करवटे ले रहा था। यौवन की दहलीज पर कदम रख चुकी थी। उसकी ही बड़ी बहन (ताऊ जी मतलब बड़े पापा की बेटी) रुचि जो बहुत ही धूर्त किस्म की थी। स्वार्थी तो बहुत ही थी।ऊपर से इतनी बिगड़ी हुई कि कब उसने उसी चालाकी में अंजली को फंसा लिया और अंजली समझ ही नही पायी। रुचि का एक मित्र था सौरव ।दोनो बस एक दूसरे को इस्तेमाल कर रहे थे।मगर अंजल

लघुकथा- अभागिन हूँ मैं

शादी के बाद ससुराल में  रूपमती ने जैसे ही कदम रखा कि काली बिल्ली रास्ता काट गयी। गावँ की बूढ़ी औरते जो खुद तो इन अंधविश्वास का शिकार थी ऊपर से,बेचारी 16 साल की कच्ची उम्र में ब्याह कर आई रूपमती इन सब बातों से अनभिज्ञ ,मगर घर मे घुसने से पहले हुए इस बिल्ली कांड ने उसका मनोबल तोड़ दिया।उसकी विधवा सास जो देखने मे जितनी भोली लग रही थी।अंदर से ही एक दम करेले जैसी कड़वी। चारो तरफ हाय तौबा मचा हुआ था। कि नई बहुरिया अपशकुनी है। रूपमती सोच रही थी कि उसने क्या किया। मग़र लोगो को कौन समझाता कि न दोष बिल्ली का था न उसका। कही से खबर मिली कि रूपमती के पिता जी को हार्ट अटैक आ गया है।आपा धापी में उसने पिता जी की दवा देना भूल गयी थी। उसका ही प्रभाव था कि विवाह के कारण पिता जी की लापरवाही की वजह से ये अटैक आया। और रूपमती के ससुराल वालो का लांछन कि शादी होते ही कैसे सबके लिये मुसीबत बनकर आयी है।रूपमती की माँ  जन्म देते ही उसको,इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी।बस एक बूढ़ी दादी और अपने पिता के साथ रहती थी।जीवन के इस पड़ाव में न जाने अनगिनत सपने सजाने वाली रूपमती आज इन फिजूल बातो को सुन रही थी।मैट्रिक पास  रूपमती

कविता-तुम्हे लग जाये मेरी उम्र(विपुल मेरा भाई)

मेरे होठों की मुस्कान तुम्हे मिल जाये, तेरा हर गम मुझे मिल जाये, हर पल संग संग गुजारे, तुम बचपन से ही थे नटखट,  मैं थी भोली और नादान, तुम खूब सताते थे मुझे, तुम जैसा भाई जो मिल गया, बहुत खुशनसीब बहन बन गयी मैं, तुम्हारे संग गुजरा बचपन मैं भूली नही, हम आये साथ साथ इस दुनिया मे, बस उस भगवान से यही दुआ करती हूँ, सलामत रखे मेरे भाई(विपुल) को, जीवन का हर लम्हा खास हो जाये उसका, तुम से जो रिश्ता है मेरा, दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास है, तुम्हारा हर पल साथ मिला, हर दुःख दर्द को साथ साथ सहते गये, कोई भी मुश्किल आयी मुझ पर, तुम ढाल बन गये, नाज़ बहुत है मुझे मेरे भाई पर, यूँ ही तुम हमेशा खुश रहो, भगवान तुम्हे हर कदम पर कामयाबी दे, हर गम से तुम अनजान रहो, ये ज़िन्दगी के चौबीस साल गुजर गये, वक़्त का पता ही नही चला, तुम्हे मेरी उम्र का एक हिस्सा तोहफ़े में दे रही हूँ, ज़िन्दगी भर खुश रहो ये दुआ दे रही हूँ, 'उपासना पांडेय' (आकांक्षा) हरदोई (उत्तर प्रदेश)

कविता- ये जरूरी तो नही( यादों में कैद)

हर मोहब्बत करने वाले को मोहब्बत मिले ये जरूरी तो नही, साथ भले ही न मिले मुझे तेरा,  हर शख्श से मुझे मोहब्बत हो , ये जरूरी तो नही, तुमसे मोहब्बत हो गयी मुझे, किसी और को उस नज़र से देखूं, ये भी जरूरी तो नही, तुमने वफ़ा की मुझसे , हर कोई वफ़ा करे ये जरूरी तो नही, तुम्हारी मोहब्बत मिली ये कोई कम है क्या, अब ज़िन्दगी भर का साथ मिले, ये जरुरी तो नही, जानती हूँ कि तुम्हे पाना इतना आसान भी नही है, मगर हार मान लूँ ये भी तो सही नही, वक़्त कुछ देर साथ देगा जरूर, क्या पता किस्मत साथ दे दे मेरा, हर बार ठोकर मिले जरूरी तो नही. मुझे तुम मिल जाओ, ऐसी किस्मत नही है मेरे पास, लेकिन खुद को बदनसीब समझूँ, ये भी तो ठीक नही है, तुम्हारी मोहब्बत के हकदार सिर्फ हम ही तो हुऐ, ज़िन्दगी भर साथ रहे ये जरूरी तो नही, जुदा हो जाये ये किस्मत की बात है, हम तुम्हे भूल जायेगे,  ये कभी सोचना नही, यादों में एक शख्श रहेगा ताउम्र, उन यादों से निकाल दूंगी तुम्हे, ऐसा कभी होगा नही, दर्द तो होगा दिल को बहुत तेरे जाने के बाद, लेकिन सबको मोहब्बत में मोहब्बत मिले, ये जरूरी तो नही. 'उपासना पाण्डेय'

प्रतिलिपी कहानी

"किस्मत से मिले हो तुम", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : http://hindi.pratilipi.com/akanskha-pandey-upasna/kismt-se-mile-ho-tum?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क