कहानी-सौतेली मां नही हूँ
।रूपा महज 19 साल की थी जब उसका विवाह 40 साल के सुरेश से हुई थी। गरीबी के कारण मां बाप पर बोझ ही थी वो उम्र में इतने बड़े आदमी से विवाह कर दिया। रूपा तो नासमझ सी थी। सुरेश की पहली पत्नी उर्मिला ने जुड़वा बच्चो को जन्म देते ही स्वर्ग सिधार गयी। और बच्चो का लालन पालन किया सुरेखा बुआ ने जो बालविवाह होने से उम्र से पहले ही विधवा हो गयी थी। तो अपने भाई सुरेश और बूढ़ी अम्मा के पास ही रहती थी। सुरेश की पत्नी की मौत से पूरा घर शोक ग्रस्त था। सुरेश को चिंता थी कि उसके बच्चो का पालन पोषण कैसे होगा। धीरे-धीरे 5 महीने बीत गये। सुरेश को यूं चुपचाप रहते देख अम्मा और बहन सुरेखा को चिंता होने लगी। ऊपर से जुड़वा बच्चो की भी फिक्र की बिन मां के बच्चे कैसे रहेंगे। आस पड़ोस की औरतो ने सलाह दी कि कोई गरीब घर की लड़की ब्याह लो। और पहले ही समझा देना कि इन्ही बच्चो की मां बनकर रहे वरना कोई बात नही। अम्मा रोज इधर उधर ऐसी लड़की तलाश रही थी और फिर मिल ही गयी रूपा । सुरेखा के ससुराल के पड़ोस की ही थी। सब बातचीत हो गयी और विवाह मन्दिर में ही सादगी तरीक़े से हो गया। सुरेश ने पत्नी का हक तो नही दिया बस सिंदूर और मंगलसूत्र का हक दे दिया था। उसकी विवाह की इच्छा ही नही थी। मगर बच्चो का हवाला देकर राजी कर लिया था। अम्मा और बहन सुरेखा ने। रूपा ने बहुत ही गरीबी में जीवनयापन किया था। बस यहां खाने पीने और कपड़े लत्ते मिल जाते। बस घर वालो को मुफ्त की आया जो मिल गयी थी। बच्चो की देखरेख और घर दोनो को संभालती थी रूपा। मगर एक स्त्री को पति का सुख भी चाहिये होता है दिनभर दुकान पर रहता सुरेश और शाम को घर आकर भोजन करते वक़्त तो थोड़ा हां हूं हो जाती बस इससे ज्यादा कभी आगे कुछ नही सोचा कि आखिर रूपा की भी अपनी कुछ इच्छाएं है। धीरे-धीरे बच्चे भी बड़े होने लगे। आस पड़ोस की औरतें बस अम्मा से चुगली करती कि बहु पर ध्यान रखना सौती मां सौती होती है। कभी कभी तो वो खुद सुन लेती मगर कभी कुछ न बोलती। एक ऐसे घर मे रह रही थी जहाँ सिर्फ लोगो को उसकी जरूरत थी। बाकी उसके साथ न कोई ज्यादा बात करता न कोई कुछ कहता। उसको घुटन सी होती मन करता कि कही दूर चली जाए। मग़र जब बच्चो की ओर निहारती तो माँ की ममता रोक लेती। विवाह के इतने समय बीत जाने पर भी आज तक कही नही गयी थी। मायके जाने की इच्छा तो बहुत होती मग़र कभी किसी ने सोचा ही नही न उसकी सास ने न पति ने और न माँ बाप ने। चुपके चुपके रो लेती मग़र किसी से कुछ न कहती। शादी को 2 साल बीत गए थे। सुरेश ने कभी खुद को उर्मिला की यादों से अलग ही नही कर पाया। मगर आज कुछ तबियत ठीक नही लग रही थी तो आज कमरे में ही आराम करना ठीक समझा।दुकान बन्द रखने की सोची तबीयत भी हल्की सी ठीक नही लग रही थी। पलंग पर लेटे लेटे न जाने किन यादों में खोये कि रूपा की मौजूदगी न जान पाये। जैसे ही रूपा ने ये सोचा कि ज्वर कही बढ़ तो नही गया बदन को छू कर देखने की ये कोशिश कर नही पा रही थी। इन 2 सालों में कभी पति पत्नी इतने करीब नही आये थे। आज पहली बार रूपा सुरेश के पास बैठी थी। जैसे ही उसने सुरेश को छुआया उसके कोमल स्पर्श ने अचानक से आंखे खोली सुरेश ने झेंप से गये दोनो।रूपा ने हालचाल पूछा आज रूपा को पहली बार इतने करीब से देखा था बड़ी बड़ी आंखे और घुंघराले बालों की सुंदर सी रूपा को एकटक देखे ही जा रहा था सुरेश। पता नही क्या समझ आया कि उसने रूपा को अपनी ओर खिंचते हुए गले लगा लिया। रूपा कही कोई सपना तो नही देख रही यही सोच ही रही थी कि नन्हा सा केशव धीरे धीरे अपनी मां के पास आया और तोतली सी आवाज में माँ बोला जब उसने तो सुरेश की आंखों आंसू आ गये ये सोचकर की रूपा ने तो उसके बच्चो को अपना लिया मगर उसने कितना दुख दिया आज तक। अम्मा भी चुपके से दरवाजे की ओट से ये देख कर आंसू पोछकर हट गई वहाँ से। दोनो बच्चे अपने माँ और अपने पिता की गोद में खिलखिला रहे थे। आज रूपा एक सौती मां के संबोधन से मुक्त हो चुकी थी। जो लोग सोचते थे उसके लिये। आज रूपा का त्याग सबको समझ आ गया था।
'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
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