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"आखिरी पड़ाव", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/0RDdfgDLpSEG?utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

मेरी प्यारी माँ

माँ एक शब्द नही है संसार बसता है उसमें, अपने खून से सींचकर हमे जीवन देती है, कितनी भी मुश्किलें क्यूँ न सहे, मगर कभी कुछ नही कहती है, कब मुझे भूख लगी कब मुझे प्यास लगती है, न जाने कैसे समझ जाती है माँ, बिना मेरे कुछ कहे सब समझ जाती है माँ, खुद तो भूखे रह लेगी माँ, अपने हिस्से का हर निवाला क्यूँ बांट देती है माँ, पालपोसकर इतना बड़ा कर देती है माँ, फिर भी कभी एहसान जताती नही माँ, कभी प्यार से डांट देती है माँ, और एक पल में ही मना लेती है माँ, नसीब वालो को मिलता है प्यार माँ का, मेरे दिल मे बसती है मेरी माँ, कितना प्यार देती है माँ ये शब्द कम पड़ जायेंगे, मेरे ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है मेरी माँ, उसने ही ये संसार दिखाया, मुझे चलना सिखाया हर कदम पर गिरने से बचाया, मेरी प्यारी माँ तुम न होती तो मैं ना होती, इन आँखों से कैसे संसार को देखती, बस मेरे पास सदा रहना प्यारी माँ, कभी खुद से दूर न करना मेरी माँ, 'आकांक्षा पाण्डेय'उपासना हरदोई(उत्तर प्रदेश)

वासना नही प्रेम है ये

वासना नही प्रेम है ये- अगर मैं तुमसे अपने दिल का हर हाल कहूं, तो वो प्रेम है मेरा, अगर मैं तुमसे मिलने का जिक्र करूं, तो वो मिलन जिस्म का नही रूह से रूह को मिलने की ख्वाहिश होगी, मैं अगर तुमसे ढेर सारी बाते करूँ, तो वो प्रेम है मेरा छलावा नही, तुम अगर मुझे आजमाना चाहो तो आजमा लो, कोई मेरे जज्बात समझे न समझे, मगर तुम समझ लो बस, मुझे अब फिक्र ही नही है मेरे कल की, एक तुम्हे पाने के बाद मैं बेफिक्र हो गयी हूँ, मुझे नही चाहिये कोई और, बस तुमसे मिलने के बाद हर खुशी मिल गयी, तमन्ना यही है कि तुम्हारे चेहरे की  मुस्कान बनूँ, ये प्रेम है मेरा, कोई वासना नही की मेरा दिल भर जायेगा, ये दिल और मैं तुम्हे कभी भूल जाऊँगी, ऐसा कभी कोई दिन नही आयेगा, "उपासना पाण्डेय"आकांक्षा आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश)

कहानी- उम्मीद की नई किरण

सोना एक स्कूल में पढ़ाती थी। घर के कामो के लिए उसने पास की हो झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली कांता को रख लिया था कांता का पति पास की ही फैक्ट्री में लेबर था जो पैसा मिलता उससे किशोर शराब पी जाता। कांता की 2 बेटियां थी शोभा और सुंदरी । किशोर को सिवाय शराब के कुछ नही दिखता।कांता भले ही खुद अनपढ़ थी मगर वो अपनी बेटियों को पढ़ा लिखा कर किसी लायक बनाना चाहती थी।दिन रात मेहनत करके जो पैसे मिलते उनको एक करके जोड़ती ।ताकि उसकी बेटियां भी स्कूल जाकर पढ़ सके। कांता जहाँ रहती थी वहां का माहौल बेहद ही गन्दा था यूँ कहे तो सिवाय गंदगी के वहाँ कुछ नही था  और ऊपर से अशिक्षित लोग जिनका जीवन सिर्फ  मजदूरी करके पैसा कमाना और उस पैसे से शराब और खाने का ही प्रबंध कर पाते थे वो लोग, तो बस्ती के लोग  अपनी बच्चियो को पढ़ने के लिए न भेज कर कुछ ऐसा काम करते थे जिसको सुनकर शर्म आती थी कि कोई अपनी बेटियों से भी ऐसा काम करवा सकता है।  और वो भी सिर्फ चंद पैसों के लिये।बस यही समाज था कांता का।जिससे वो बाहर निकलना चाहती थी। दोनो बेटियों के बारे में सोचकर न जाने क्यूँ कभी कभी कांता कुछ ज्यादा ही परेशान रहती। उस झुग्गी के पास जो

कविता- दिल की बात दिल ही जाने

कविता- दिल की बात दिल ही जाने तुम हकदार हो उन शब्दों के, जो आज तक कभी कह नही पायी, तुम न मिले होते तो क्या लिख पाती, इन शब्दों को लिखने के लिए, जज्बात तुम बने , मैं कलमकार थी, तुम शब्दकोश बने,  मैं कोयला से हीरा बन गयी, रास्ते का  पत्थर थी मैं,  मन्दिर की खूबसूरत मूरत बन गयी, बहुत ख़ुशनसीब हूँ मैं,  जो तुम्हारे प्यार के काबिल बनी, प्यार तो आज सब करते हैं, फिर सब एक दिन दोराहे पर छोड़ जाते हैं, ये कैसा नसीब था मेरा, ठोकर मिली और टूट गयी मैं, हर रोज खुद को कोसती रही, फिर तुम मिले अचानक एक अनजाने मोड़ पर, और फिर मोहब्बत की कहानी शुरू हुई, एक सच्चा हमसफ़र मिल गया, बेवफाई के दौर में सच्ची और पवित्र मोहब्बत मिली, जिंदगी के जो सबक मिले, उनको झुठलाने लगी हूँ मैं, कुछ वक्त ने दर्द दिया था उसको भूलने लगी हूँ, ख्वाब मेरे बस टूटने को ही थे, तुम आये और समेट लिया एक पल में ही, तिनके सी बिखरने लगी थी जिंदगी मेरी, अब तुम्हारे नाम के साथ मेरी जिंदगी जुड़ने लगी है, तुम्हारे लिए खुद को सवारने लगी हूँ,  महकते गुलाब हो तुम मेरी बगिया के, तुमसे ही ये वीरान सी ज़िन्दगी महकने लगी है,

कविता-आधुनिक युग की नारी हूँ मै

मैं आधुनिक युग की नारी हूँ, कमजोर नही हूँ मैं, सीमा को लांघना सीखा नही कभी, ऐसे संस्कार मुझे मिले नही, पहनती हूँ जीन्स टॉप भले ही, मगर बुजुर्गों का सम्मान करना सीखा है मैंने, कोई निर्भया बनाकर तोड़ना चाहता है, मगर मुझे चलने का हौसला आता है, हर मुश्किल का सामना करना जानती हूँ, मैं आधुनिक युग की नारी हूँ, मुझे हारना नही आता, लक्ष्मीबाई बनकर उनका सामना करना जानती हूँ, कभी दुर्गा का रूप लेकर, कभी काली का रूप लेकर, हर युग मे राक्षस रूपी दानव का संहार करना जानती हूँ, मैं आधुनिक युग की नारी हूँ, कभी मिट्टी का तेल डालकर जलाने की कोशिश होती है, कभी मुझे गर्भ में मारने की साजिश होती है, मगर मैं कभी हारी नही , कभी दहेज रूपी दानव का शिकार हुई, कभी बलात्कर और छेड़छाड़ का शिकार हुई, आधुनिक युग की नारी हूँ मैं, डटकर सामना करती हूँ मैं, कभी एसिड अटैक का शिकार हुई, कभी सरेआम बदनाम हुई, मगर टूटी नही मैं, हिम्मत और हौसले कम नही है मेरे, मुझे भरोसा है मेरे इरादों पर, इस जगत का उद्धार एक नारी ने किया, मैं नारी हूँ गर्व से कहती हूँ मैं, बस आधुनिक नारी हूँ मैं, हर रोज लड़ी कई जज्बा

Prtilipi pr meri story

"सागर से गहरा है प्यार हमारा", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%97%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE-h1gaGwLd6HUt&utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

लघुकथा- सुयोग्य वर

प्रियंका एक बेहद ही पढ़ी लिखी और खुले विचारों वाली लड़की थी मगर एक मध्यमवर्गीय परिवार में उसके विचारों को समझने वाला कोई नही था। माँ गृहणी थी और पिता जी एक सरकारी स्कूल में क्लर्क।परिवार का माहौल बिल्कुल साधारण था।दुनिया की चमक दमक से दूर। आज के लोगो को जो चाहिये वो है दिखावा। जो उसके परिवार में था नही।पैसे की कीमत क्या होती है प्रियंका भलीभांति जानती थी। घर मे कमाने वाला एक और इतना ख़र्चा फिर भी पापा को कभी परेशान नही देखा था उसने कभी कुछ नही कहते अपने बच्चो से या पत्नी से। आज प्रियंका की शादी के दिन न जाने पापा क्यूँ बहुत परेशान थे सब तो घर के कामो में व्यस्त थे।प्रियंका अपने कमरे से पापा को देख रही थी बार बार घड़ी पर नज़र डाल कर परेशान से हो रहे थे अचानक लैंडलाइन पर फ़ोन आया उधर से प्रियंका के ससुर का फ़ोन था बोल रहे थे कि 5 लाख रुपया तैयार रखना वरना बारात वापिस ले जाएंगे वो। उधर कमरे में दूसरे फ़ोन से ये सब सुन रही थी प्रियंका। आंखों से आंसू बह रहे थे पापा के भी और प्रियंका के भी। कभी पापा को रोते नही देखा था उसने। दिल मे गुस्सा भरा हुआ था । बारात दरवाजे पर थी और उसके ससुर पापा की तरफ इशा

प्रतिलिपी पर मेरी कहानी

"प्रेमकथा प्रतियोगिता के लिए(पवित्र प्रेम)", को प्रतिलिपि पर पढ़ें : https://hindi.pratilipi.com/story/%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE%E0%A4%95%E0%A4%A5%E0%A4%BE-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A5%8B%E0%A4%97%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F%E0%A4%AA%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AA%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%AE-04iTtktgTeJz&utm_source=android&utm_campaign=content_share भारतीय भाषाओँ में अनगिनत रचनाएं पढ़ें, लिखें और दोस्तों से साझा करें, पूर्णत: नि:शुल्क

लघुकथा- हैप्पी वेलेंटाइन डे

रिया खुद को  बहुत ही होशियार और आधुनिक युग की लड़की समझती अगर दादी कभी कह भी देती कि बिटिया जरा संभल कर कदम रखा कर जवान लड़कियों के ये लकछन ठीक नही और ये लाल लिपिस्टिक और काजर लगा कर कालिज जाती हो तेरे बाप को तो बस पैसा कमाने के सिवाय कुछ दिखता ही नही। और मां को घर के कामो से फुर्सत नही है कोई ध्यान ही नही देता है इसपर रिया बड़ी बड़ी आंखे मटका कर बोलती दादी आप भी न गवारो जैसी बातें मत किया करो ये मुम्बई है ।आपका वो   गांव यहां के लोग वहां के जैसे नही है । आप भी डैड के साथ यहाँ आ गयी वरना आप भी अंकल के साथ उस धूल और गोबर में सड़ती। और मुँह बिचका कर अपने कमरे में चली गयी। मोबाइल पर रवि की 9 मिसकॉल  !अरे  आज तो वैलेंटाइन डे और आज तो उसको रवि से मिलना था। ओफ्फो दादी के चक्कर मे भूल ही गयी थी। रवि को कॉल की घँटी जा रही थी उधर से फ़ोन उठाया रवि ने। "कहाँ थी " गुस्से में रवि बोला। रिया- सॉरी जानू । वो कुछ प्रॉब्लम थी सॉरी यार प्लीज़ मान जाओ न। रवि- ठीक लेकिन मेरी शर्त है अभी मिलने आओ। हम्म आती हूँ। बोलकर फ़ोन काट दिया। बहुत छोटी सी ड्रेस पहनकर कमरे से बाहर आई रिया को देखकर दादी की आंख

लघुकथा- हैप्पी वेलेंटाइन डे

रिया खुद को  बहुत ही होशियार और आधुनिक युग की लड़की समझती अगर दादी कभी कह भी देती कि बिटिया जरा संभल कर कदम रखा कर जवान लड़कियों के ये लकछन ठीक नही और ये लाल लिपिस्टिक और काजर लगा कर कालिज जाती हो तेरे बाप को तो बस पैसा कमाने के सिवाय कुछ दिखता ही नही। और मां को घर के कामो से फुर्सत नही है कोई ध्यान ही नही देता है इसपर रिया बड़ी बड़ी आंखे मटका कर बोलती दादी आप भी न गवारो जैसी बातें मत किया करो ये मुम्बई है ।आपका वो   गांव यहां के लोग वहां के जैसे नही है । आप भी डैड के साथ यहाँ आ गयी वरना आप भी अंकल के साथ उस धूल और गोबर में सड़ती। और मुँह बिचका कर अपने कमरे में चली गयी। मोबाइल पर रवि की 9 मिसकॉल  !अरे  आज तो वैलेंटाइन डे और आज तो उसको रवि से मिलना था। ओफ्फो दादी के चक्कर मे भूल ही गयी थी। रवि को कॉल की घँटी जा रही थी उधर से फ़ोन उठाया रवि ने। "कहाँ थी " गुस्से में रवि बोला। रिया- सॉरी जानू । वो कुछ प्रॉब्लम थी सॉरी यार प्लीज़ मान जाओ न। रवि- ठीक लेकिन मेरी शर्त है अभी मिलने आओ। हम्म आती हूँ। बोलकर फ़ोन काट दिया। बहुत छोटी सी ड्रेस पहनकर कमरे से बाहर आई रिया को देखकर दादी की आंख

कविता-आप जैसा पिता मिला

कविता-आप जैसा पिता मिला मेरा क्या अस्तित्व होता , अगर आप जैसा पिता मुझे न मिलता, हर ज़िद को पूरा किया, हर पल मेरी खुशियों का ख्याल रखा, आप परेशान होते हो, क्यूँ कुछ नही कहते हो?? हर तकलीफ अकेले सहते हो, मैं बेटी हूँ आपकी तो क्या हुआ, आपकी हर तकलीफ समझती हूँ, हमे भी तकलीफ होती है, हर वक़्त हमारी खुशियों के लिए, कितनी मेहनत करते हैं, न सुकून की नींद, न कभी आराम किया, हर अच्छे पिता के जैसे हो, दुनिया क्या कहती है, कोई फर्क नही मुझको, आप ही हमारा संसार हो, आप ही हमारी दुनिया हो, हर मुश्किल में आपके साथ हूँ, हर परिस्थिति को समझना , इतना आसान नही, मगर मैं क्यों भूल जाऊं, जब मेरी हर खुशी का ख्याल, आपने रखा तो फिर क्यूं सुनूं मैं लोगो की बकवास, दुनिया ने क्या साथ दिया था , एक मजबूत सा इंसान जो खुद टूट कर बिखर गया, मगर कभी हमे टूटने नही दिया, धन्यवाद उस भगवान का, जिसने मुझे आप जैसा पिता दिया, "उपासना पाण्डेय"आकांक्षा हरदोई(उत्तर प्रदेश)

कविता-लोभ का अन्त कहाँ?

दहेज लेकर कब तक अपने बेटों को बेचेंगे लोग, फिर उम्मीद करते हैं कि एक बेटी घर आये बहू नही, कभी दर्द महसूस करो उन मां बाप का, जिनके घर बेटियां ब्याहने के लिये है, दहेज की आड़ में अच्छा कारोबार है, कभी बहू नौकरी वाली चाहिये, कभी संस्कारी बहू चाहिये, ज्यादा पढ़ी लिखी हो और चुप रहने वाली हो, हर ताने को सहने वाली हो, पोती नही पोते चाहिये, घर चलाने का ढंग आता हो, और नौकरी पर भी जाने वाली बहू चाहिये, कैसा ये लोभी समाज हो गया है, त्याग की मूरत तो चाहिये, मगर कभी खुद कोई त्याग करेगे नही, कभी कभी यही समझना मुश्किल हो जाता है, शादी तो एक पवित्र बंधन है, फिर क्यूँ करते हैं लोग व्यापार, बहू फोर व्हीलर वाली चाहिये, साथ साथ ढेर सारा दहेज चाहिये, और उम्मीद करते हैं , कि एक बहू नही बेटी मिलनी चाहिये, उस बेटी का दर्द क्या समझा था तब, जब बूढ़े बाप से दहेज लेकर भी, ससुर ने ये बोला था, एक एहसान कर रहे हैं, तेरे सिर् से एक बोझ उतार रहे हैं, ये शब्द जब भी याद आते हैं, उस बेबस पिता का चेहरा नज़र आता है, जिसने जीवन भर की पूंजी भी सौप दी, फिर भी डिमांड अभी बाकी है, 'उपासना पाण्डेय&

अनजान मुसाफ़िर- भाग-8

कहानी-अनजान मुसाफ़िर भाग-8 सूरज की रोशनी चारो तरफ फैल चुकी थी। मां नाश्ता बना कर सबके आने की प्रतीक्षा करने लगी। रेवती पहले नाश्ते की टेबल पर इतना शोर मचाती थी कि सब परेशान हो जाते थे। मगर आज सुबह तो हुई मगर अब वो रेवती बहुत बदल गई थी। न वो मुस्कुराहट न वो बचपना । पूरा घर सिर पर उठाने वाली रेवती अब बहुत गुम सुम सी थी। पापा और मां तो सोच रहे थे कि पता नही क्या बात है । पूरा घर सकते में था कोई कुछ पूछता भी तो ' कुछ  नही ' का रिस्पॉन्स दे देती । मन ही मन घुट रही थी किसी को कुछ बता भी नही सकती थी। ऋषभ ने तो उसकी खबर तक नही ली कि वो कैसे जी रही है उसके बिना। दो प्यार करने वालो के बीच इतनी दूरियां उन दोनों ने सोचा तक नही था कि एक दिन वो अलग तो होंगे ही साथ ही उनका रिश्ता इस कदर टूट कर बिखर जायेगा। किसका ज्यादा नुकसान हुआ ये तो नही पता मगर अगर रेवती की हालत को देखा जाये तो सबसे ज्यादा तकलीफ वही सहन कर रही थी। हर रोज फ़ोन करती मगर ऋषभ का नंबर बन्द आता। उसने एक फैसला कर ही लिया ।  ट्रिंग ट्रिंग घन्टी जा रही थी मगर वर्षा फ़ोन क्यूं नही उठा रही  10वी बार कॉल कर रही थी रेवती। अबकी बार वर्षा