कविता- दिल की बात दिल ही जाने
कविता- दिल की बात दिल ही जाने
तुम हकदार हो उन शब्दों के,
जो आज तक कभी कह नही पायी,
तुम न मिले होते तो क्या लिख पाती,
इन शब्दों को लिखने के लिए,
जज्बात तुम बने ,
मैं कलमकार थी,
तुम शब्दकोश बने,
मैं कोयला से हीरा बन गयी,
रास्ते का पत्थर थी मैं,
मन्दिर की खूबसूरत मूरत बन गयी,
बहुत ख़ुशनसीब हूँ मैं,
जो तुम्हारे प्यार के काबिल बनी,
प्यार तो आज सब करते हैं,
फिर सब एक दिन दोराहे पर छोड़ जाते हैं,
ये कैसा नसीब था मेरा,
ठोकर मिली और टूट गयी मैं,
हर रोज खुद को कोसती रही,
फिर तुम मिले अचानक एक अनजाने मोड़ पर,
और फिर मोहब्बत की कहानी शुरू हुई,
एक सच्चा हमसफ़र मिल गया,
बेवफाई के दौर में सच्ची और पवित्र मोहब्बत मिली,
जिंदगी के जो सबक मिले,
उनको झुठलाने लगी हूँ मैं,
कुछ वक्त ने दर्द दिया था उसको भूलने लगी हूँ,
ख्वाब मेरे बस टूटने को ही थे,
तुम आये और समेट लिया एक पल में ही,
तिनके सी बिखरने लगी थी जिंदगी मेरी,
अब तुम्हारे नाम के साथ मेरी जिंदगी जुड़ने लगी है,
तुम्हारे लिए खुद को सवारने लगी हूँ,
महकते गुलाब हो तुम मेरी बगिया के,
तुमसे ही ये वीरान सी ज़िन्दगी महकने लगी है,
अब ज़िन्दगी के मायने समझने लगी हूँ,
तुम्हारा क्या रिश्ता है ये बता नही सकती,
बस तुम्हे हर ख्वाब में शामिल करने लगी हूँ,
हमसफ़र बन जाओ बस यही अरमान बाकी है,
हर ख्वाब सजने लगा है तुम्हारे संग,
हर रात आते हो ख्वाबो में मेरे,
बस दिल ने जो महसूस कर लिया,
उसे शब्दों में कह नही सकती,
तुम से "हम" बनकर मिलने लगे हो,
जिसे ढूंढती रही मैं वो राह मिल गयी है,
किसी भटकते राहगीर को उसको मंजिल मिल गई,
"उपासना पाण्डेय "आकांक्षा
हरदोई (उत्तर प्रदेश)
Comments
Post a Comment