आत्ममंथन- ( खोने लगा बचपन) भाग- 2

आज के दौर में जो बचपन खो रहा है । उसका मुख्य कारण यह है कि लोग बच्चो को एकल परिवार में रखते हैं । पहले परिवार का प्यार और साथ दोनो ही मिलते थे बच्चो को। दादा -दादी ,बड़े बुजुर्गों की देखरेख में उनका पालनपोषण होता था। उनको सभी संस्कार दिए जाते थे।बड़ो का सम्मान करना सिखाया जाता था।कही न कही यह भी मुख्य कारण है कि कामकाजी पेरेंट्स सिर्फ पैसे कमाने में जुटे हैं मगर बच्चो को समय नही दे पाते। बस बच्चो का लगाव भी इसीलिए कम हो  रहा है।उनको भी बस अपनी जरूरतों से ही मतलब रह गया। क्योंकि बच्चे तो कच्चे घड़े के समान होते हैं उनको समझना पड़ता है कि उनके कोमल भावनाओ को कोई नही समझता।जब समझने की कोशिश करते हैं पेरेंट्स तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।पैसे सिर्फ जरूरते पूरी करते हैं ।और मेरा उन पेरेंट्स से यही कहना है कि अगर बच्चे ही गलत संगत में पड़ जाए तो फिर ऐसे पैसा कोई काम नही।ध्यान देने वाली यही बात है कि उसको अच्छा माहौल दे।और देखे कि बच्चे का रुझान किस तरफ है ।ज़िन्दगी में बच्चे तभी आगे बढ़ते हैं जब उनको हम राह दिखाएंगे।और जीवन की पूंजी में जिनके बच्चे सफल होते हैं उन माता -पिता का जींवन सफल हो जाता है।कही न कही बच्चो से ज्यादा माँ बाप जिम्मेदार है कि वो अपने बच्चो पर ध्यान नही देते।अगर ये बच्चे अपराध की तरफ अग्रसर हो जायेगे तो देश का भी अहित होगा।

"मत रोको उनकी उड़ान को, समझो उनकी हर बात को,कोई तो सोच होगी उनकी भी ,कोई तो होगा ख्वाब भी"

  युवा लेखिका ,विचारक- उपासना पाण्डेय(आकांक्षा) हरदोई (उत्तर प्रदेश)

(यह लेख "मेरी कलम से" लिखा गया है।)


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