आत्ममंथन-(खोने लगा बचपन) भाग-1
आज के आधुनिक परिवेश ने अगर किसी को ज्यादा प्रभावित किया है तो वो है बच्चे। युवा भी अपना कीमती वक़्त मोबाइल( गैजेटस ) में ही बर्बाद कर रहे हैं। आज मैं इसी विषय पर कुछ लिखना चाहती हूं कि उन पेरेंट्स को अपने बच्चो पर ध्यान देना चाहिये। जिस उम्र में उनको पढ़ाई करनी चाहिये।उस उम्र में वो सोशल साइट्स यूज़ कर रहे है।पेरेंट्स भी दुनिया की अंधी दौड़ में उनकी जरूरतों को पूरा कर रहे है।डिजिटल होने के चक्कर मे वो अपने बच्चे पर ध्यान ही नही देते।बच्चो का मन तो सिर्फ इच्छाओं से भरा होता है। मगर इसका ये मतलब तो नही कि उनके भविष्य से खिलवाड़ होने दे। मैने अपने आस पास ही देख है कि बच्चे की उम्र 11 साल से ज्यादा नही होगी मगर उनके हाथ मे एंड्राइड मोबाइल होगा।क्या ऐसे बच्चे हमारे देश का विकास करेगे।क्या आने वाले कल में इंजीनियर ,डॉक्टर, टीचर, या कुछ भी बन पाएंगे। मुझे तो नही लगता क्योंकि जब ये इस उम्र में सोशल साइट्स पर व्यस्त रहेंगे तो फिर आने वाले कल के बारे में सोच ही नही पाएंगे।बच्चे तो नासमझ होते हैं मगर ये पैरंट्स क्यों भूल जाते हैं कि उनका बच्चा गर्त में जा रहा है। बच्चो की मासूमियत ही खो गयी हैं।आज जो अपराध हो रहे हैं उनका मुख्य कारण मोबाइल भी है मगर ये चीजें भी सिर्फ इसीलिए ईजाद की गई है ताकि हम अपनो से जुड़े राह सके। मगर उसका दुरप्रयोग हो रहा है।आये दिन न्यूज़ पेपर में पढ़ते है कि किसी युवती कीअश्लील वीडियो वायरल हो रही है । यदि बच्चो पर ध्यान नही दिया गया तो यही होना है।डिजिटल बनाने के चक्कर मे बच्चो के कोमल मन से खिलवाड़ न करे।ये बच्चे हमारे देश का भविष्य है। इसीलिए निवेदन है कि उनको प्यार दे,वक़्त दे और उनको समझे वरना ब्लू व्हेल गेम ने बच्चो की जान नही ली।बल्कि उनके पेरेंट्स जिम्मेदार है।और ये हमारे देश के निर्माणकर्ता है उनको देश को विकसित करने दे। उनको जांचे उनकी गतिविधियों पर ध्यान दे।कि आपके बच्चे क्या कर रहे हैं।और मोबाइल तब तक न दे जब तक उनको सही गलत की जानकारी न हो।
मेरी कलम से-"उपासना पाण्डेय"(आकांक्षा)"हरदोई उत्तर प्रदेश
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