कहानी -भीड़ में अलग था वो

रोजी को आज लखनऊ जाना था। तड़के सवेरे पहुचं गयी रेलवे स्टेशन ।उसका मेडिकल का एग्जाम था।स्टेशन पर काफी भीड़ थी। नवयुवको और नवयुवतियों की भीड़ थी।वो भी शायद एग्जाम देने जा रहे थे।वो भी ट्रेन का इतंजार कर रही थी। स्टेशन की भीड़ से रोजी को अजीब सा महसूस हो रहा था।रोजी दुनिया को इतना अच्छा नही मानती थी उसको लगता था।कि दुनिया मे कोई किसी को नही मानता सब अपने मतलब से मतलब रखते हैं।यही सोच थी जो ,एक तो एग्जाम की टेंशन ऊपर से सीट रिजर्व न होने के कारण ये भी डर की पता नही कैसे अकेले सफर तय करेगी।मन मे अनजानी सी बेचैनी थी।लोगो के प्रति उसका नजरिया यही था। और फिर अकेली लड़की का सफर करना भी आज के टाइम में थोड़ा दुविधा पूर्ण होता हैं। अनाउसमेंट हुआ कि लखनऊ जाने वाली बाघ एक्सप्रेस प्लेटफार्म 5 पर आ रही है। सभी यात्री अपना सामान समेटने लगे।और वो लड़के लड़किया भी जो लखनऊ जा रहे थे। आज पहली बार अकेले जा रहे थी। जनरल कोच में सफर करना कितना मुश्किल है ये उन पैसेंजर से बेहतर कौन समझ सकता है जो जिनका सफर  धक्का मुक्की वाला होता है।और कितने ही अजीब यात्री भी दिखते हैं । उनको देख कर यही लगता है कि जैसे उनका सीट का कब्जा हो मजाल है कि कोई देख ले उस तरफ घूरती आंखे यही किस्से सुनाते थे उसको पापा आज बेचारी अकेले कैसे सामना करेगी जाहिल पैसेंजर्स का।ट्रेन का आगमन हो गया था। ट्रेन की भीड़ देख कर उसके मुंह से उफ्फ निकल गया। जनरल कोच में घुसने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक थी। और उसके अंदर घुसने के लिये भीड़ में न जाने ऐसे कई अनजान पुरुष जिनकी मानसिकता कितनी घटिया हो सकती है।ये तो हम हर रोज पढ़ते ही है।छेड़छाड़ और अभद्र टिप्पणी जो कि पुरुष वर्ग की सोच उन लड़कियों पर तंज कसना ।जो जीन्स पहने हो तब तो वो लोग ऐसे देखते हैं जैसे कोई गुनाह कर दिया हो लड़कियों ने।खैर रोजी हिम्मत करके घुस गई । खड़े खड़े सफर करने का ये उसका पहला सफर होगा। जनरल कोच की ये भीड़ ओफ्फो बड़े बूढ़े और औरतो से भरा ये कोच जिसमे रोजी सफर कर रही थी।बैठना तो दूर खड़े तक होने की जगह नही थी। उसको वो लोग मिल ही गये जिनको सिर्फ घूरने में पता नही क्या मजा आता है।लड़कियों को घूरने वाले पुरुषों से रोजी को बहुत नफरत थी।मगर आज का ये सफर उसको बहुत ही लम्बा लग रहा था। कैसे इन जानवरों मतलब जो गलती से इंसान बन गए।उन भेड़ियों के साथ उसको सफर करना मजबूरी थी। खिड़की की तरफ बैठना बहुत पसंद था रोजी को ।जब भी कही घूमने जाती तो मम्मी पापा के साथ ही जाती थी।खैर आज उसको एहसास हो रहा था कि कैसे लड़कियां ट्रैवल कर लेती है। सामने ही सिंगल सीट पर करीब 25 या 26 साल का नवयुवक बैठा था। कानो में ईयरप्लग लगाए दुनिया से बेखबर वो युवक संगीत की दुनिया मे मस्त था। रोजी ने देखा उसको।पता नही वो अनजान युवक को देख कर किसी खास इंसान की याद आ गयी।हूबहू उसकी तरह दिख रहा था। चेहरे पर वही सादगी भोलापन और जो रोजी को (खास इंसान)  में पसंद थी।वो थी उसकी सी दाढ़ी ।एक पल को उसको ( खास इंसान)  की याद आ गयी।भूली नही थी।मोबाइल भी नही ले जा रही थी।एग्जाम हाल में ले जाने की परमिशन नही थी।इसीलिए वो घर पर ही छोड़कर आयी।उस नवयुवक ने रोजी को देखा।पता नही क्या सोचा उस युवक ने जो सिंगल सीट पर भी एक अनजान लड़की को बैठने का आमंत्रण दे दिया। रोजी के पास लास्ट ऑप्शन भी यही था।सो वो वो बैठ गयी साइड में। । बहुत ही असहज सा महसूस कर रही थी।कुछ पल तो रोजी को लगा कि कही ये युवक औरों के जैसे कही कोई गन्दा मंसूबा तो नही।कुछ देर बैठी रही।उस कोच में बैठे अधेड़ उम्र के आदमी जिनकी रोजी की उम्र की बेटी होगी।वो भी घूर रहे थे उसको। मगर रोजी उन सब को इग्नोर कर के खिड़की तरफ देखती रही।जबकि खिड़की के पास वो युवक बैठा था।वो उधर देखती तो कही लड़का ये तो नही सोच रहा कि मैं उसपर फिदा हो गयी हूँ।लड़का अच्छे घर से लग रहा था।ब्लू जीन्स और ब्लैक टी - शर्ट पहन रखी थी उस लड़के ने। लखनऊ आने में अभी 25 मिनट बाकी थे।लड़का खड़ा हो गया और न जाने उसको ऐसा क्यूं लगा कि रोजी अनकम्फर्टेबल महसूस कर रही हैं। उसने अपना बैग उठ कर पीठ पर टांगते हुए बोला कि आप खिड़की की तरफ बैठ जाये शायद लड़का समझ गया था कि जो अधेड़ पुरुष है वो रोजी को घूर रहे हैं। खिड़की की साइड मिलते ही रोजी ने चैन की सांस ली।वो लड़का आराम से यही सांग सुन रहा था।क्यूंकि उसकी ईयरप्लग से आती हल्की सी आवाज " कि तेरे लिए दुनिया छोड़ दी है............!  कुछ देर बाद मेरा लखनऊ स्टेशन भी आ गया।मैं ट्रेन से उतर कर प्लेटफार्म पर आ गयी।और उस यात्रा से रोजी को सीख मिली की दुनिया मे सब गलत नही होते।रोजी की जो मनसिकता थी पुरुष वर्ग के लिए। उसने महसूस किया कि पुरुष वर्ग भी 2 भागो में बंटा है।जिनमे एक कैटगरी उस लड़के के जैसे लोग आते हैं।दूसरे वर्ग में वो घटिया और गन्दी सोच वाले।इसी सोच के साथ रोजी ने युवकों के प्रति नफरत को थोड़ा कम कर दिया।और दिल ही दिल उस युवक को धन्यवाद भी बोला।और इस यात्रा से कुछ सीख भी मिल गयी।

(,  इस  कहानी से यह  सीख मिली कि ज़िन्दगी में सब एक जैसे नही होते है)

युवा लेखिका-  'उपासना पाण्डेय( आकांक्षा) हरदोई( उ.प्र.)


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