लघुकथा- ख़ुशनसीब हूँ मैं

आरोही को आरव की बहुत याद आ रही थी। आरव उससे इतनी दूर जो था। हर रोज अखबारों में बेवफाई और धोखेबाज़ी की किस्से तो पढ़ती थी! कभी कभी उसका दिल डर भी जाती कि कही उसका आरव भी उसको धोखा न दे दे,जबकि आरोही ने ही प्रपोज़ किया था आरव को,फिर भी क्यूं डरती है।

कब तक तक ऐसे ही डरेगी,और आरव कितना सीधा शांत,और पढ़ायी में अव्वल आने वाला होनहार लड़का। आरोही बेहद अल्हड़ और चंचल स्वभाव की लड़की,जिसको न अपने आज की खबर न आने वाले कल की कोई भी फिक्र ही नही। बस मौज मस्ती वाली ज़िन्दगी जीने वाली पागल सी लड़की थी।मगर जब होश संभाला उसने आरोही ने तब सब कुछ खो चुकी थी। आरोही ने कभी नही सोचा था कि उसकी जिंदगी एक दम से बदल जायेगी। चारो तरफ से उसका भरोसा खत्म हो चुका था। फिर वक़्त ने करवट ली और उसकी उदास ज़िन्दगी में आरव ने कदम रखा, दो सालों में आरव के प्यार ने उसको भरोसा करना भी सीख दिया।अब उसको आरव की सच्ची चाहत पर यकीन जो हैं।आरव उससे दूर रहता है फिर भी आरोही को आरव पर यकीन है कि वो उसको कभी धोखा नही देगा।बहुत किस्मत से ऐसे लोग मिलते हैं और आरोही ख़ुशनसीब है मगर एक अजीब सा डर है कि अगर आरव नही मिला तो??

ऐसे ही ख़यालो से दिल डरता है कि इतना प्यार करने वाला लड़का,जो उसकी जाने अनजाने कितनी परवाह करता है।ऐसा ही तो इंसान माँगती थी भगवान से,यही तो है वो?? 

बस दोनो कभी अलग न हो।

'किन ख़यालो में गुम हो कालेज नही चलना'

प्रिया ने ख्वाबो की दुनिया मे खो गयी आरोही को हिलाते हुऐ बोला। दोनो हँसती हुई कॉलेज गयी।

'उपासना पाण्डेय'(आकांक्षा) हरदोई 'उत्तर प्रदेश'


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