कहानी-अनजान मुसाफ़िर
अनजान मुसाफिर"-भाग-1
कितनी हसीन शाम थी, वही हल्की गुलाबी शाम
जो ऋषभ को बहुत पसंद थी। मगर क्यों उदास सा था।क्यूं सब कुछ था।मगर उसको किसी की कमी खल रही थी।कही ये रेवती की कमी तो नही। क्यूं उसने उस वक्त रेवती का साथ नही दिया।आज भी याद आती है।वो लड़की जिसने कितनी खुशियां दी थी।मगर एक हादसे से दोनों की ज़िंदगी मे जो तूफान आया ।ऋषभ जब भी याद करता है वो दिन तो उसकी आँखों मे सिर्फ दर्द और तकलीफ ही होती है।मगर ये हादसा रेवती को उससे बहुत दूर ले गया।लोग कहते है नसीब का लिखा कोई नही जानता।काश वो इस नसीब को कैद कर सकता।ऋषभ खो गया उन पुराने दिनों में ।कैसे मिली वो लड़की ।जिसे हम ऋषभ की ज़िंदगी भी कह सकते है।
- तुम्हारी गली की पहली शाम-
शर्मा जी की दो बेटियां और एक बेटा । जिसमें रेवती बड़ी थी।बहुत लाड़ प्यार दिया था शर्मा जी ने।कितनी नटखट थी बचपन से ही ।जब जन्म हुआ था उसका तो शर्मा जी ने पूरे मोहल्ले में लड्ड़ू बंटवाए थे।आखिर उनके घर लक्ष्मी जो आयी थी। माँ तो बहुत प्यार करती ही थी।पूरे घर की रानीबिटिया थी।उसके आने से घर मे रौनक आ गयी थी।पूरे मोहल्ले के लोग भी बहुत चाहते थे।
अभी वो पाँच साल की हुई कि। फिर शर्मा जी के यहाँ एक बेटी ने जन्म लिया ।मगर माँ बाप के लिए संतान चाहे लड़का हो या लड़की प्यार तो बराबर ही करेंगे।
समय बीत रहा था।दोनो बेटियां अच्छे स्कूल में पढ़ने जाती।शर्मा जी अच्छे पद पर थे।तो घर मे सम्पन्नता थी।मगर रमा के मन मे हमेशा एक पुत्र
की इच्छा थी।उनको यही लगता कि बेटियां तो एक दिन छोड़ कर ससुराल चली जायेगी फिर उनका ख्याल कौन रखेगा।शर्मा जी उनको समझाते।मगर चाहें लाख सोच बदले मगर अगर औरतो के मन की कोई ना जाने।
समय ने करवट ली।और शर्मा जी के घर एक बेटे का जन्म हुआ। अब कोई दुख नही था रमा को।
रेवती भी अब थोड़ी बड़ी हो गयी थी।अपने भाई बहन काजल और संदीप दोनो से रेवती बहुत सुंदर थी। माँ तो डर भी जाती कि कल को कोई ऊंच नीच ना हो जाये।शर्मा जी उनको अपने संस्कारो पर भरोसा करने को बोल देते।मगर ये पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता एक बेटी के बाप को भी डरा देता।अखबार में छपती रोज की खबरों से डरते कि पता नही इस समाज को क्या हो गया है।रेवती अब कॉलेज से निकलकर यूनिवर्सिटी में आ गयी थी।२१ बर्ष की नवयुवती रेवती की सुंदरता को चार चांद लग गए थे।उसी गली में विष्णु श्रीवास्तव जी ........क्रमशः
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