लघुकथा- सुयोग्य वर

प्रियंका एक बेहद ही पढ़ी लिखी और खुले विचारों वाली लड़की थी मगर एक मध्यमवर्गीय परिवार में उसके विचारों को समझने वाला कोई नही था। माँ गृहणी थी और पिता जी एक सरकारी स्कूल में क्लर्क।परिवार का माहौल बिल्कुल साधारण था।दुनिया की चमक दमक से दूर। आज के लोगो को जो चाहिये वो है दिखावा। जो उसके परिवार में था नही।पैसे की कीमत क्या होती है प्रियंका भलीभांति जानती थी। घर मे कमाने वाला एक और इतना ख़र्चा फिर भी पापा को कभी परेशान नही देखा था उसने कभी कुछ नही कहते अपने बच्चो से या पत्नी से।

आज प्रियंका की शादी के दिन न जाने पापा क्यूँ बहुत परेशान थे सब तो घर के कामो में व्यस्त थे।प्रियंका अपने कमरे से पापा को देख रही थी बार बार घड़ी पर नज़र डाल कर परेशान से हो रहे थे अचानक लैंडलाइन पर फ़ोन आया उधर से प्रियंका के ससुर का फ़ोन था बोल रहे थे कि 5 लाख रुपया तैयार रखना वरना बारात वापिस ले जाएंगे वो। उधर कमरे में दूसरे फ़ोन से ये सब सुन रही थी प्रियंका। आंखों से आंसू बह रहे थे पापा के भी और प्रियंका के भी। कभी पापा को रोते नही देखा था उसने। दिल मे गुस्सा भरा हुआ था । बारात दरवाजे पर थी और उसके ससुर पापा की तरफ इशारे कर के बुला रहे थे। सुधीर जिसकी शादी प्रियंका से हो रही थीं। शायद वो इन सब से अनजान था। 

"देखिये समधी जी हमने अपने बेटे को बहुत पढ़ाया लिखा कर इस लायक इसलिए बनाया ताकि उसकी शादी अच्छे से हो और हैसियत नही थी आपकी तो क्यूँ शादी का रिश्ता तय किया सुधीर के पापा तपाक से बोले"

ओह्ह पापा आप तो आप मुझे बेच रहे है ??

सुधीर भी कमरे में आ गया।ये तो अच्छा हुआ कि प्रियंका ने आप की सारी बाते मुझे बता दी।और अंकल इनकी तरफ से माफी मांगता हूं मैं!! क्षमा कीजियेगा। और चलिये यहाँ से फेरो के लिए देर हो रही है।अंकल आप परेशान मत हो अब प्रियंका मेरी जिम्मेदारी है।

ये सुनकर पापा के चेहरे पर कुछ सुकून दिखा प्रियंका को पापा की पसन्द पर गर्व भी!!

"उपासना पाण्डेय"आकांक्षा

आज़ाद नगर हरदोई(उत्तर प्रदेश)

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