लघुकथा-दादी की कुर्सी

सोनिया आज पूरे 15 साल बाद अपने देश भारत मे आयी थी। छोटी सी थी जब पापा मम्मी रिया दीदी, बूढ़ी दादी,और डॉगी टॉम को छोड़कर जब विदेश वाली मौसी के साथ भेज दिया था। दीदी से 5 साल छोटी थी सोनिया। उसको दादी से दूर कर दिया गया। मॉम ने हमेशा अपनी मर्जी सब पर थोपी  डैड को तो बस हमेशा चुप होते ही देखा था। सोनिया के दादा जी अपने बेटे से ज्यादा बहू को तवज्जो देते थे। डैड किसी मारिया नाम की लड़की से प्रेम करते थे। मगर दादा जी ने मॉम को चुना था कुछ नही कर सकी दादी अपने बेटे के लिये मजबूर थी। मॉम ने डैड का दिल जीतने की कोशिश तो नही कि ऊपर से अपनी इच्छाएं उन पर थोप दी। 2 साल बाद रिया दीदी का जन्म हुआ घर मे सब खुश थे। पापा भी खुश थे। मॉम को किटी पार्टी से फुर्सत ही नही थी। रिया दीदी की देखभाल दादी करती । डैड गुस्सा होते मॉम पर तो दादा जी मॉम की तरफदारी करते। दादी सब देखती फिर भी कहती कुछ नही। कुछ दिनों बाद दादा जी चल बसे। कैंसर के रोगी थे कितना इलाज हुआ मगर एक दिन दादी को छोड़कर दुनिया से चले गये। अब पूरे घर मे मॉम की मर्जी चलती। फिर कुछ दिन बाद मेरा जन्म हुआ मगर मॉम की लापरवाही बढ़ती ही जा रही थी और अब तो दादी को नौकरानी बना दिया था। सब काम दादी ही देखती। बड़े बाप की बिगड़ी औलाद थी मॉम । रिया दीदी और मैं दोनो दादी से बहुत प्यार करते थे। डैड हम दोनो को बहुत चाहते थे। मगर मॉम को न जाने क्या परेशानी थी कि डैड जिस चीज को प्यार करते वही चीज उनसे दूर कर देती पहले मारिया आंटी डैड से दूर हो गयी। और फिर हैम दोनो बहनों को भी बाहर भेज दिया पढ़ने के लिये। दादी और डैड अकेले हो गये थे हम दोनों बहनों के जाने से। कभी कभी बात तो हो जाती थी। मगर मॉम ने कभी प्यार के दो बोल नही बोले हमसे। दादा जी के गुजरने के बाद दादी गुमसुम रहती थी हम दोनों बहनें उनको खुश रखने की कोशिश करते थे। आज 15 साल बाद दादी तो नही मिलेगी मग़र उनके हर सामान में उनको तलाशने के लिये ही सिर्फ सोनिया आयी थी। और अब भारत मे सेटल होने के लिये आयी थी। दादी का सामान पैक कर रही थी साथ ले जाने के लिये । और वो एक पुरानी कुर्सी भी जिस पर बैठने के लिये रिया और वो दोनो झगड़ती थी। दादी के मौत की खबर उसको 20 दिन बाद मिली। अपनी दादी के अंतिम दर्शन भी नही कर सकी वो।मगर उनके सामान को सहेजकर रखेगी वो और वो कुर्सी भी। क्योंकि मॉम उस कुर्सी को भी कबाड़ में ही दे देगी  क्योंकि महत्वहीन है उनके लिये सबकुछ। महत्वपूर्ण है सिर्फ पैसा और अपनी इच्छाएं। दादी की तस्वीर को एकटक देख रही थी सोनिया।

'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा

हरदोई(उत्तर प्रदेश)

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