लघुकथा- धुंध

आज सुमन ने नव वर्ष के आगमन में खूब शानदार पार्टी रखने की सोची । आज वैभव भी आ रहा था मुम्बई से। बहुत खुश थी मानो सारे जहां की खुशी एक पल में ही मिलने वाली थी। पूरे 3 महीने के बाद मिल रही थी वो अपने बॉयफ्रेंड वैभव से। मन ही मन मुस्कुरा रही थी और उसकी मम्मी को आश्चर्य हो रहा था कि गुमसुम रहने वाली सुमन आज इतनी खुश हैं मगर चलो अच्छा है जो भी है उनकी बेटी खुश तो है।

आज होटल में शानदार पार्टी थी सारा अरेंजमेंट वैभव ने किया था । सुमन ने सोचा कि चलो वो भी स्टेशन पहुचकर वैभव को सरप्राइज देगी। उसको याद है कालेज टाइम में उसकी बहुत हेल्प करता था स्टडी में। पुरानी बातों को याद करते करते कब स्टेशन आ गया पता ही नही चला। ऑटो स्टेशन पहुँच गया था । ऑटो से उतरकर वह प्लेटफार्म 2 पर पहुँची। ट्रेन आने में 20 मिनट कम थे कितनी सर्दी थी चारो तरफ कोहरे

की धुंध थी। ट्रेन आ चुकी थी सामने आता हुआ वैभव दिखाई दिया। मगर ये क्या उसके हाथों को थामे एक लड़की भी दिखाई दी। जिससे हँस हँस के बाते कर रहा था वैभव। जैसे ही नज़दीक आया वह । अचानक से सुमन को देख कर रुक गया। 

'ये कौन है'??

उस लड़की ने पूछा वैभव से ।

वैभव की आंखों में एक अजीब सा गुस्सा देख रही थी जैसे उसको सुमन का यूँ आना अच्छा न लगा। 

'ये मेरी कालेज फ्रेंड है!? वैभव ने बोला उस लड़की को। 

'ओह्ह' चलो जल्दी से वरना लेट हो जायेगे । कैब बुक कर चुके थे और एक बार भी उस वैभव ने सुमन को चलने को नही बोला। दोनो जाते हुए दिखाई दे रहे थे बस बाकी बची थी धुंध। क्या यही प्यार था वैभव का। कि वैभव को बॉस की बेटी से प्यार हो गया। और इतने दिनों से जान भी नही पायी वो??

'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा

हरदोई(उत्तर प्रदेश)

Comments

Popular posts from this blog

कविता-रिश्तों के भंवर में

मेरी कलम से।