कहानी-अनजान मुसाफ़िर भाग-7

 कहानी-अनजान मुसाफ़िर-भाग -7

रेवती ने ऋषभ के जाने के बाद खुद को अपने कमरे में ही कैद कर लिया था। क्या यही किस्मत थी उसकी क्या यही प्यार था उसका। काश उससे मिली न होती वो!

यही सोचकर रोते हुऐ उसकी आंखे लाल हो गयी थी। रमा जी आयी रेवती के कमरे में ।

'क्या हुआ रेवती कुछ दिन से देख रही हूँ कि बहुत गुमसुम रहती है कोई तकलीफ है किसी ने कॉलेज में कुछ कहा बताओ न रेवती रमा जी ने पूछ??

झूठी मुस्कुराहट लाते हुये खुद के आंसू छिपाते हुए बोली -माँ आप भी न कैसी बाते करती हो।क्या कभी आपकी बेटी ने आपसे कुछ छिपाया है जो अब छिपायेगी। खुद को कैसे संभाल पा रही थी रेवती खुद ही जानती थी। एक तरफ मां से झूठ बोल रही थी ऋषभ को गये हुए 3 दिन हो गये थे। न कोई कॉल न मैसेज। कहाँ होगा किस हाल में होगा कुछ भी तो नही पता था उसको। क्या सच मे वो उसको छोड़कर चला गया था।या फिर कोई मजबूरी थी उसकी अरे तो बता तो सकता था। मैं कौन सा उसको रोक लेती। क्यों किया ऐसा ऋषभ ने। यही सोचकर सिर फटा जा रहा था।  मे कैसी हो गयी थी।कितने दिनों से खुद की शक्ल नही देखी थी उस पागल सी लड़की ने ।कॉलेज जाने का दिल भी नही करता। हर रोज कॉल करती ऋषभ के नम्बर पर मगर हमेशा स्विच ऑफ बताता। हर रोज इसी उम्मीद में जीने लगी थी कि कभी न कभी उसका ऋषभ वापिस आयेगा अपनी रेवती के पास। मेरा ऋषभ इतना निष्ठुर नही हो सकता। दोनो ने कितनी बाते की थी याद है उसको । उन दोनों ने तो फैमिली प्लांनिग तक कर ली थी। हर शाम उनके प्यार की गवाह थी उस रात को कैसे भूल गया । जब दोनों कॉलेज ट्रिप का बहाना बनाके घूमने गए थे। उस रात को कैसे भूल गया वो। आज तक हर ख्वाब साथ साथ देखा था फिर आज क्यों तन्हा कर दिया मुझे। मोबाइल स्क्रीन पर ऋषभ की फ़ोटो को ज़ूम करके बोली रेवती। ये क्या अचानक से उसको उबकाई आयी जी मिचलाने जैसे अभी उल्टी हो जाएगी।

बाथरूम की तरफ दौड़ी उल्टियां हो रही थी उसको।

पूरा शरीर पसीने से तर था सिर चकरा रहा था। ये क्या हो रहा है मुझे कही मैं????

'नही'

नही ये नही हो सकता । सिर पकड़कर बैठ गयी रेवती अगर ऐसा सच हुआ तो फिर??

मैं मम्मी पापा को क्या मुँह दिखाऊंगी ! कितने सपने देखे थे उन्होंने कि मैं उनके नाम को रोशन करुँगी और आज ये सब अब मैं क्या करुँगी।

कैसे धर्मसंकट में डाल गये तुम ऋषभ ?

कैसे निकलूं इससे बाहर । और कुछ दिन छिपा सकती हूं मगर कुछ दिन बाद तो सबको पता चल जायेगा। कुछ समझ नही आ रहा है कहाँ हो तुम प्लीज़ मेरे पास आ जाओ मैं अकेले किसी का सामना नही कर सकती। मुझे नही पता था कि उस पवित्र प्यार और विश्वास यूँ तोड़ कर चले जाओगे तुम। तुम्हारे दिल ने क्या ये एक बार भी नही सोचा कि मैं कैसे जिऊंगी तुम्हारे बिना। याद है जब तुम कुछ दिन के लिए कही बाहर गए थे कितना रोई थी और तुम सब कुछ छोड़कर वापिस आ गए थे। फिर से वैसे ही आ जाओ । आज मुझे तुम्हारी जरूरत है ऐसे बोलते बोलते न जाने कब नींद की आगोश में चली गयी रेवती पता ही नही चला उसको। बस उसके सुंदर से चेहरे पर आँसुओ की लकीरें दिख रही थी।क्रमशः

'उपासना पाण्डेय'आकांक्षा

हरदोई(उत्तर प्रदेश)

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